सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि तलाक डिक्री के खिलाफ अपील लंबित होने के दौरान शादी का अनुबंध अमान्य नहीं हो सकता, खासकर तब जब यह अपील निर्धारित अवधि के बाद दायर की गयी हो। इस मामले में एक महिला की गुजारा भत्ता याचिका इस आधार पर खारिज कर दी गई थी कि उसकी शादी अमान्य थी क्योंकि वह शादी तब हुई थी जब उसके पहले पति के साथ शादी समाप्त किए जाने के एक फैसले के खिलाफ उसकी अपील अब भी लंबित थी। शीर्ष अदालत को इस मुद्दे पर विचार करना था कि क्या एक तलाक की डिक्री के खिलाफ अपील के लंबित रहने के दौरान की दूसरी शादी अमान्य हो जाएगी, भले ही डिक्री के अनुपालन पर कोई रोक नहीं थी। न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5, 11 और 15 का हवाला देते हुए कहा कि यह कभी भी विधायी इरादा नहीं हो सकता कि तलाक की डिक्री और उसके खिलाफ अपील की निर्धारित अवधि समाप्त होने के बाद वैध रूप से अनुबंधित विवाह देर से अपील दायर करने पर अमान्य हो जायेगा। किसी भी तरह, इस मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों के अंतर्गत धारा 15 का प्रतिबंध लागू नहीं होता, जहां अपील दायर करने की निर्धारित अवधि समाप्त होने के लगभग एक साल बाद तलाक की डिक्री के खिलाफ अपील दायर की गई थी। धारा 15 एक विवाह के समाप्त हो जाने के बाद दूसरे विवाह की अनुमति प्रदान करता है, यदि डिक्री के खिलाफ अपील का अधिकार न हो, या यदि ऐसे अधिकार होने के बावजूद अपील समय से दायर न की गयी होगी, या यदि अपील दायर होने के बाद खारिज हो गयी हो। इस मामले में निर्धारित अवधि के भीतर कोई अपील नहीं दायर की गयी थी। Also Read - आईसीएसई की नौवीं एवं 11वीं के असफल छात्रों को पुनर्मूल्यांकन/ प्रोमोशन का एक मौका दिये जाने संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस विधायिका का यह इरादा कतई नहीं हो सकता कि तलाक की डिक्री और उसके खिलाफ अपील की निर्धारित अवधि समाप्त होने के बाद वैध रूप से अनुबंधित विवाह देर से अपील दायर करने पर अमान्य हो जायेगा। यदि 2006 में अपीलकर्ता के पूर्व पति का विवाह यह मानते हुए कानूनन वैध कि उसका कोई जीवनसाथी नहीं था, तो अपीलकर्ता के पुनर्विवाह को भी अमान्य नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि हिन्दू विवाह कानून की धारा 15 के तहत प्रतिबंध केवल तभी लागू होता है, जब निर्धारित अवधि के भीतर अपील दायर की गयी हो, न कि अपील दायर करने में देरी के बारे में निवेदन के बाद, जब तक तलाक पर रोक लगायी न गयी हो या अपील के लंबित रहने के दौरान पक्षकारों या उनमें से किसी को भी पुनर्विवाह करने से रोकने के लिए न्यायालय का अंतरिम आदेश न हो।की अपील मंजूर करते हुए पति को निर्देश दिया कि वह अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता दे। केस नं. : क्रिमिनल अपील नं. 321/2020 कोरम : न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति एम आर शाह
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